दिल्ली के चुनाव ने बदली भारतीय राजनीति की परिभाषा

आप के पक्ष में आये चौकाने वाले परिणामों ने राष्ट्रीय दलों को किया आत्म मंथन को मजबूर


सुरेश कांडपाल, प्रधान संपादक (दी टॉप टेन न्यूज़)- देश की राजधानी दिल्ली में जिस तरह से एक बड़ी विजय हासिल करते हुए अरविंद केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं इसे देखकर मुझे आनंद कुमार की जीवनी पर बनी फिल्म सुपर थर्टी का एक डायलॉग याद आ रहा है जो कि फिल्म में कई बार दिखाया जाता है वह इस तरह है   कि अब राजा का  बेटा राजा नहीं बनेगा अब राजा वही बनेगा जो हकदार होगा…..मौजूदा परिपेक्ष में यह बात अन्य राजनीतिक दलों पर सटीक बैठती है खासकर कांग्रेस पर जो कि दिल्ली राज्य पर 8 वर्षों पूर्व राज कर रही थी वह आज अपना खाता तक नहीं खोल पाई है।यह वही केजरीवाल है जिन्हें सूचना के अधिकार विषय पर काम करने के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला था फिर भी सोनिया गांधी ने केजरीवाल को सूचना आयुक्त बनाए जाने से कतई इंकार कर दिया थावहीं केजरीवाल अब अपनी मेहनत ज़िद और जुझार पन से दिल्ली के तीसरे मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।दिल्ली की जनता को तो सोनिया गांधी का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने तब केजरीवाल को नकार दिया था और दिल्ली वासियों के सामने एक तीसरी पार्टी ‘आप’ का जन्म हुआ नहीं तो उन्हें भी हम उत्तराखंड वासियों की तरह कांग्रेस और बीजेपी में से ही किसी एक को मजबूरी में ही सही चुनना ही पड़ता।
वही आम आदमी पार्टी को भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का शुक्रगुजार रहना चाहिए जो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के तीन कार्यकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों को भी नहीं भुना पाए और आज की तारीख में इनके 67 उम्मीदवारों की जमानत जप्त हो गई और कांग्रेस पार्टी को एक शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा।वहीं भारतीय जनता पार्टी को भी यह सबक ले लेना चाहिए कि वह प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर हमेशा चुनावी वैतरणी पार नहीं कर सकते हैंलोकसभा और विधानसभा चुनाव जीतने के मुद्दे अलग-अलग होते हैं नहीं तो जो पार्टी महज 9 महीने पहले एक बड़ी जीत दर्ज कर देश की सत्ता पर विराजमान हुई वह धीरे-धीरे पांच छह राज्यों में अपना जनाधार खो चुकी है।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली में अपनी सातों सीटों पर विजय हासिल की थी वहीं विजय अब इनके बड़बोले पन और अपशब्दों के कारण इनसे दूर हो गई और  इनको मुंह की खानी पड़ी। पूरे चुनाव में सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी ही अपनी मर्यादा में रहे और अपने पद की गरिमा को बनाए रखा……

हिंदुस्तान की अधिकतर जनता जागरूक और पढ़ी लिखी है अब वह जात धर्म के भेदभाव और जातिगत राजनीति से दूर होकर विकास के नाम पर वोट देती है यह दिल्ली की जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ ‘आप’ को जीता कर दिखा दिया है आज वर्तमान स्थितियों को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों को यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि आने वाले चुनाव सिर्फ अपने काम और विकास के नाम पर लड़े और जीते जा सकते हैं।

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