दी टॉप टेन न्यूज़ देहरादून
नई दिल्ली – 6 मई की शाम को दिल्ली के जंतर मंतर पर उत्तराखंड समाज के लोगे ने उत्तराखंड की बेटी किरन नेगी के बलात्कारियों औऱ हत्यारों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जल्द से जल्द फांसी दिये जाने की मांग को लेकर कैंडल मार्च निकाला कर सिस्टम के खिलाफ प्रदर्शन किया।
किरन नेगी के पिता कुंवर सिंह नेगी और माता के साथ उत्तराखंड समाज के काफ़ी सारे लोग और सामाजिक संगठन के साथ रूलिंग पार्टी के कार्यकर्ताओं और पूरे एनसीआर से दूर दूर से आकर लोगो ने बेटी किरन के लिए इंसाफ की मांग की। इस बारे में कैंडल मार्च निकाल रहे लोगों का कहना था कि पीड़ित परिवार पिछले दस वर्षों से न्याय के लिये दर दर भटक रहा है ओर परिवार की माली हालत भी ठीक नही है,हालांकि इस केस में तीन आरोपियों को लोअर कोर्ट से और हाई कोर्ट से फांसी की सज़ा सुना दी गई है फिर तीनो आरोपियों ने कोरोना काल से पहले सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी।
लेकिन आज सभी लोगो की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जल्द से जल्द आरोपियों को फांसी की सज़ा दी जाये।
जानिये कौन है किरन नेगी और उसके साथ क्या हुआ
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के गरीब माता-पिता के प्रवासियों की एक बेटी थी किरण नेगी… अपने माता-पिता और दो छोटे भाइयों के साथ दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के द्वारका में कुतुब विहार, फेज-2 में रहती थी ।वह दिल्ली के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही थी और शिक्षिका बनना चाहती थी ।अपने पिता की अल्प आय को पूरा करने के लिए घटना के समय वह अभागी लड़की गुड़गांव के साइबर सिटी में डेटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में कार्यरत थी ।
9 फरवरी 2012 का मनहूस दुर्भाग्यपूर्ण दिन वह दो अन्य लड़कियों के साथ अपने काम से घर लौट रही थी। उसके घर के पास उसे रोका गया और फिर तीन हैवान राहुल, रवि और विनोद नाम के दरिंदों ने अपहरण कर लिया, जो हाल ही में किसी अन्य अपराध में जमानत पर जेल से बाहर आए थे ,उसे हरियाणा के रेवाड़ी जिले के रोढाई गांव से करीब 30 किमी दूर एक सरसों के खेत में ले जाया गया,वहां तीनों ने उसके साथ दुष्कर्म किया रेप के बाद हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए उन राक्षसों ने उसकी आंखों में तेजाब डाल दिया और शराब की टूटी बोतलों को उसके प्राइवेट पार्ट में धकेल दिया । इसके बाद उसे मरने के लिए वहीं छोड़ दिया गया लेकिन वह तुरंत नहीं मरी खून की कमी और दर्द और दुख में कमजोर होकर मदद की प्रतीक्षा में वह बेकसूर मासूम उसी क्षेत्र में मरने से पहले पूरे चार दिनों तक जीवित रही जहां उसके साथ बलात्कार किया गया था ।
जब यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी तब उसके पिता घर पर मौजूद नहीं थे उसके पड़ोसियों ने फोन पर अपहरण की सूचना पिता को दी थी वे तुरंत घर वापस गये और पुलिस से उसकी बेटी की तलाश करने की अपील की पुलिस ने कथित तौर पर कोई कार्रवाई करने से इनकार कर दिया और उसके परिवार से अपराधियों का पीछा करने के लिए उनके लिए एक कार की व्यवस्था करने को कहा थाने में तीन दिन के सामाजिक धरने के बाद पुलिस ने आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया उन्होंने अपना अपराध कबूल कर लिया और 14 फरवरी को पुलिस को अपराध स्थल पर ले गए अपराधियों की क्रूरता और पुलिस की उदासीनता के चलते किरण नेगी का कुछ घंटे पहले ही निधन हो चुका था अगर पुलिस ने पेशेवर संवेदनशीलता दिखाई होती तो शायद किरण नेगी आज जीवित होतीं और इलाज के बाद वह निश्चित रूप से अपने जीवनरुपी माला को फिर से पिरोने की सफल कोशिश कर रही होती ।
निर्भया कांड की तरह देश के व्यापक समाज से उस तरह की सार्वजनिक नाराजगी इस केस में देखने को नहीं मिली जो भी विरोध और दोषियों को दंड दिलाने का समर्थन किया वो अकेला उतराखंड समाज ने किया किरण नेगी का दुर्भाग्य ही मान लीजिए कि इंसाफ के लिए उनके अभिभावक एवं उतराखंड समाज की आवाज मीडिया और व्यापक समाज द्वारा नहीं सुनी गयी खैर मामले को फास्ट ट्रैक किया गया और 2014 में अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने तीनों अपराधियों को मौत की सजा सुनाई हाईकोर्ट ने सजा की पुष्टि की और दोषियों ने फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील की इसके बाद से मामला अधर में लटकता नजर आ रहा है।
2014 से यह केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है मगर तमाम सबूतों और निचली अदालतों के फैसलों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने इन दरिदों को फांसी का आदेश पारित नहीं किया है जिस कारण उतराखंड समाज में रोष व्याप्त है जिसे प्रकट करने के लिए शुक्रवार दिनांक 6 मई को सांय 5 बजे जंतर-मंतर पर एक विशाल कैंडल मार्च का आव्हान किया गया है ताकि अदालतों के इस सुस्त सिस्टम को झकझोरा जाय।