दी टॉप टेन न्यूज़/ देहरादून
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने के बाद सरकार ने विवाह पंजीकरण और संपत्ति रजिस्ट्री की प्रक्रिया को ऑनलाइन और पेपरलेस बना दिया है। यह कदम डिजिटलीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण है, लेकिन इस प्रक्रिया में अधिवक्ताओं की भूमिका समाप्त कर देना न्याय व्यवस्था और संविधान के मूल्यों के खिलाफ है।
अधिवक्ता अभिषेक बहुगुणा ने कहा कि सरकार द्वारा डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना एक सराहनीय पहल है, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि नागरिकों को विधिक सुरक्षा और सही परामर्श प्राप्त हो। अधिवक्ताओं की भूमिका केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित नहीं होती, बल्कि वे यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी विधिक प्रक्रियाएं संविधान और कानून के अनुरूप हों।
अधिवक्ता अभिषेक बहुगुणा ने कहा की संविधान प्रत्येक नागरिक को न्यायिक संरक्षण का अधिकार देता है। विवाह पंजीकरण और संपत्ति रजिस्ट्री जैसी प्रक्रियाएं केवल प्रशासनिक कार्य नहीं हैं, बल्कि इनके कई विधिक प्रभाव होते हैं। यदि ये प्रक्रियाएं बिना विधिक परामर्श के पूरी की जाएंगी, तो इससे भविष्य में विवादों की संख्या बढ़ सकती है, जिससे न्यायपालिका पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
अधिवक्ता बहुगुणा ने कहा, “वकील केवल दस्तावेज तैयार नहीं करते, बल्कि वे यह सुनिश्चित करते हैं कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो। यदि इन प्रक्रियाओं से अधिवक्ताओं को बाहर कर दिया गया, तो आम जनता को उचित विधिक सहायता नहीं मिल पाएगी, जिससे उनके संवैधानिक अधिकार प्रभावित होंगे।”
उन्होंने कहा की अधिवक्ताओं की भागीदारी न केवल विधिक जटिलताओं को कम करती है, बल्कि भ्रष्टाचार और गलत दस्तावेजीकरण को भी रोकती है। वर्चुअल रजिस्ट्री और ऑनलाइन विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया से यह खतरा बढ़ सकता है कि लोग बिना उचित विधिक परामर्श के निर्णय लें, जिससे उनके अधिकारों का हनन हो सकता है।
अधिवक्ताओं ने सरकार से मांग की है कि:
1. डिजिटल रजिस्ट्री और विवाह पंजीकरण में अधिवक्ताओं की अनिवार्य भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
2. विधिक प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अधिवक्ताओं की भूमिका को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में भी शामिल किया जाए।
3. यूसीसी नियमावली में संशोधन कर अधिवक्ताओं के पेशेवर अधिकारों और नागरिकों के विधिक सुरक्षा हितों को संरक्षित किया जाए।
अधिवक्ता बहुगुणा ने कहा कि यदि सरकार इस विषय पर त्वरित विचार नहीं करती, तो अधिवक्ता समुदाय बड़े स्तर पर विरोध करने के लिए बाध्य होगा। उन्होंने कहा, “हम तकनीकी प्रगति के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि न्याय प्रणाली में अधिवक्ताओं की भूमिका बनी रहे। बिना विधिक परामर्श के डिजिटल प्रक्रियाएं लोगों को कानूनी जोखिम में डाल सकती हैं।”
डिजिटलीकरण का उद्देश्य जनता की सुविधा बढ़ाना और भ्रष्टाचार को कम करना होना चाहिए, न कि विधिक विशेषज्ञता को दरकिनार करना। सरकार को संविधान के मूल्यों का पालन करते हुए अधिवक्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि न्याय व्यवस्था मजबूत बनी रहे और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो सके।