दी टॉप टेन न्यूज़ /देहरादून
देहरादून 30 अप्रैल, 2025. ‘झूठों ने की तरक्की वो महलों को पा गए। सच्चे हमारे जैसे तो सड़कों पे आ गए कुर्सी पे बैठना है तो होशियार अब रहो। लकड़ी के कीड़े कितनी ही शीशम को खा गए ‘ चंडीगढ़ से आए मशहूर शायर नवीन नीर ने जब यह चार मिसरे पढ़े तो तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठा। मौका था बुधवार को राजधानी के लैंसडाउन स्थित दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में आयोजित मुशायरे एवं कवि सम्मेलन का। करीब तीन घंटे चली शायरी की इस महफ़िल में शायरों ने प्यार-मुहब्बत और सामाजिक ताने-बाने पर गीत-ग़ज़लें सुनाकर वाहवाही लूटी।
मुशायरे की शुरुआत मोनिका मंतशा ने सरस्वती के एक गीत से की वहीं युवा शायर अमजद ख़ान अमजद ने नात सुनाई । इसके बाद शायरी का सिलसिला चलता रहा।
कुमार विजय ‘द्रोणी’ की ग़ज़ल के दो शेर ‘क्यूँ ख़्वाब से हक़ीक़त में बदल गई ज़िंदगी। इतना ज़्यादा ठहरी कि फिसल गई ज़िंदगी।। थोड़ी सी ख़ुशी,थोड़ी सी फ़ुरसत चाही थी। निकलते-निकलते,कितना निकल गई ज़िंदगी।।’ को भी श्रोताओं ने खूब सराहा।
युवा शायर अमजद ख़ान “अमजद” पुरक़ाज़वी ने नात के बाद ग़ज़ल ‘कौन कहता है परेशानी से डर जाता हूं। सख़्त राहों से भी मैं हंस के गुज़र जाता हूं।।हादसे भी मिरी रखवाली में लग जाते हैं। लेके जब माँ की दुआ सम्त-ए-सफर जाता हूं।।’ से खूब वाहवाही लूटी।
प्रसिद्ध शायरा मोनिका मंतशा ने तरन्नुम में ग़ज़ल सुनाकर तालियां बटोरी। मंतशा के दो शेरों ‘आप क्यों उसको गुनाहों का सिला कहते हैं।
ज़िंदगी वो है जिसे लोग क़ज़ा कहते हैं।। हमने देखा ही नहीं रब को हक़ीक़त में कभी। हम तो महबूब को ही अपना ख़ुदा कहते हैं।।’ को खूब पसंद किया गया।
हरियाणा से आए वरिष्ठ शायर शमीम हयात के शेर ‘आँखें खोलो पागल लड़की इतनी मत उम्मीद रखो। जिसने पायल पहनाई है ज़ंजीरें भी डालेगा।।’ को भी खूब दाद मिली।
युवा कवि शिवकुमार कुशवाहा ने अपनी ग़ज़ल के मतले’ इक चुप्पी है ख़ामोशी सी छाई है। आज भरी महफ़िल में वो तन्हाई है।।’ से खूब दाद बटोरी।
मुख्य अतिथि उपायुक्त, राज्य कर संजीव कुमार त्रिपाठी ने अपनी नज़्म ‘लोग कहते हैं कि वक़्त की बात है, ज़िंदगी के सफर में कौन किसके साथ है। हर कोई हर किसी से बेख़बर है, ज़िंदगी के सफर में जो मिल जाए वही हमसफर है।।’ से लोगों का दिल जीत लिया।
वरिष्ठ शायर शिवचरण शर्मा ‘मुज़्तर’ के शेर ‘है दौलत का ग़ुरूर उनको हमें ग़ुरबत की ख़ुद्दारी। उन्हें अपनी अना प्यारी हमें अपनी अना प्यारी।।’ को भी जमकर दाद मिली।
दर्द गढ़वाली ने संचालन करते हुए चार मिसरे ‘बोल रहा है गूंगा देखो। देख रहा है अंधा देखो।। चिल्लाना अब बंद करो तुम। सुन ना ले वो बहरा देखो।।’ पढ़े, जिन्हें खूब सराहा गया।
कार्यक्रम से पूर्व दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने सभी का स्वागत किया. और जनकवि डॉ. अतुल शर्मा और प्रसिद्ध शायरा अंबिका रूही ने कवियों और शायरों को शॉल ओढ़ा कर सम्मान किया.
इस मौके पर प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सुभाष चावला, मोना तनेजा, साहित्यकार कुसुम भट्ट, कुल भूषण, शैलेन्द्र नौटियाल, हरि चंद निमेष, शादाब अली, डॉ, वी के डोभाल,सुंदर सिंह बिष्ट, चंदन सिंह नेगी, रजनीश त्रिवेदी,भुवन प्रकाश बडोनी, डॉ. राकेश बलूनी, अंशु जैन, अरुणा वशिष्ठ, माहेश्वरी कनेरी, , नीलमप्रभा वर्मा,, चेतन खड़का सहित दून पुस्तकालय के युवा पाठक मौजूद थे।