The Top Ten News
The Best News Portal of India

समलैंगिक विवाह को मान्यता का केंद्र ने किया विरोध पढ़िए दायर हलफनामे में क्या कहा केंद्र सरकार ने

 

दी टॉप टेन न्यूज़ देहरादून

देहरादून-केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिका का विरोध किया है.केंद्र सरकार ने दायर हलफनामा में कहा कि समान लिंग वाले व्यक्तियों द्वारा का एक साथ रहना, जिसे अब अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, यह भारतीय परिवार धारणाओं से बिल्कुल अलग है इसलिए इनके लिए फैसले भी अलग प्रकार से होने चाहिए।

केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की विभिन्न याचिकाकर्ताओं की मांग का प्रतिवाद करते हुए हलफनामा दायर किया है. हलफनामे में, केंद्र ने याचिका का विरोध किया है और कहा है कि समलैंगिकों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए क्योंकि इन याचिकाओं में कोई योग्यता नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि ऐसा करना भारत की सामाजिक मान्यताओं और पारिवारिक व्यवस्था के खिलाफ होगा. इसमें कई तरह की कानूनी अड़चनें भी आएंगी. इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी के मसले पर केंद्र को नोटिस जारी किया था. साथ ही अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर करा लिया था। 

सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (13 मार्च) को होने वाली सुनवाई से पहले केंद्र ने सभी 15 याचिकाओं पर जवाब दाखिल किया है. केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा है कि भारत में परिवार की अवधारणा पति-पत्नी और उन दोनों की संतानें हैं. समलैंगिक विवाह इस सामाजिक धारणा के खिलाफ है. संसद से पारित विवाह कानून और अलग-अलग धर्मों की परंपराएं इस तरह की शादी को स्वीकार नहीं करतीं।

केंद्र ने कहा, “ऐसी शादी को मान्यता मिलने से दहेज, घरेलू हिंसा कानून, तलाक, गुजारा भत्ता, दहेज हत्या जैसे तमाम कानूनी प्रावधानों को अमल में ला पाना कठिन हो जाएगा. यह सभी कानून एक पुरुष को पति और महिला को पत्नी मान कर ही बनाए गए हैं.” सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कुछ याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लाकर उनका रजिस्ट्रेशन किए जाने की मांग की गई है।

याचिकाकर्ताओं ने कहना है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था. इसके चलते दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अब अपराध नहीं माना जाता. ऐसे में साथ रहने की इच्छा रखने वाले समलैंगिक जोड़ों को कानूनन शादी की भी अनुमति मिलनी चाहिए।

इसका जवाब देते हुए केंद्र ने कहा है कि समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से बने शारीरिक संबंध को अपराध न मानना और उनकी शादी को कानूनी दर्जा देना दो अलग-अलग चीजें हैं. याचिकाकर्ता इस तरह की शादी को अपने मौलिक अधिकार की तरह बता रहे हैं, यह गलत है. सोमवार के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारडीवाला की बेंच उनकी याचिकाओं को सुनेगी. यह बेंच आगे होने वाली विस्तृत सुनवाई की रूपरेखा तय कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों में गे कपल सुप्रियो चक्रबर्ती और अभय डांग, पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद के अलावा कई लोग शामिल हैं. इन याचिकाओं में कहा गया है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में अंतर धार्मिक और अंतर जातीय विवाह को संरक्षण मिला हुआ है. लेकिन समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव किया गया है। 

Comments are closed.

Verified by MonsterInsights