दी टॉप टेन न्यूज़ देहरादून
देहरादून-महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में छायावादी युग की महान कवयित्री हैं। महादेवी वर्मा को हिन्दी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ गिनती की जाती है। कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद में हुआ था। महादेवी वर्मा की शादी सिर्फ 14 साल की उम्र में ही कर दी गई थी।
महादेवी वर्मा की शादी बरेली के डॉक्टर स्वरूपनारायण वर्मा से हुई थी। महादेवी वर्मा कुछ वक्त के बाद ससुराल से पढ़ाई के लिए इलाहाबाद आ गईं।
अपने 80 साल के जीवन काल में उन्होंने महान कवयित्री प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्य और कुलपति, स्वतंत्रता सेनानी जैसे अनेक प्रकार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दो सौ सालों के बाद परिवार में लड़की का जन्म
महादेवी वर्मा के परिवार में पीढ़ियो सें लड़की पैदा नहीं हुई थी। महादेवी वर्मा अपने घर मेंदो सौ सालों से सालों में पैदा होने वाली पहली लड़की थीं। महादेवी वर्मा ने पंचतंत्र और संस्कृत का अध्ययन किया। महादेवी वर्मा के बारें में कहा जाता है कि वो एक भिक्षु बनना चाहती थी लेकिन महात्मा गांधी से मिलने के बाद उनका मन समाज-सेवा की तरफ चला गया। महादेवी वर्मा को एक काव्य प्रतियोगिता में ‘चांदी का कटोरा’ मिला था जिसे उन्होंने गांधीजी को उपहार में दिया था। महादेवी वर्मा ने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया।
महादेवी वर्मा के प्रमुख काव्य
महादेवी वर्मा की लेखनी में गद्य, काव्य में नए आयाम बनाए। उनकी लेखनी आम लोगों से जुड़ी हुई थी। महादेवी के काव्य संग्रहों में ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘यामा’, ‘नीहार’, ‘दीपशिखा’, और ‘सप्तपर्णा’ का आज भी कोई तोड़ नहीं है, ये जितनी पहले प्रासागिंक थीं, उतनी आज भी है। इनके गद्य में ‘स्मृति की रेखाएं’, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘पथ के साथी’ और ‘मेरा परिवार’ हिदी साहित्य जगत के चमचमाते सितारे हैं। महादेवी वर्मा आधुनिक युग की मीरा कहीं जाती हैं। भक्ति काल में जो स्थान मीरा को मिला था वहीं स्थान आधुनिक युग में महादेवी वर्मा का है मीरा का प्रियतम सगुण, साकार गिरधर गोपाल हैं। महादेवी का प्रसिद्ध गीत, ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ इस बात के साफ कर देता है कि बहुत बड़ी कृष्ण भक्त थी।
महादेवी वर्मा के आठ कविता संग्रह हैं-
1. नीहार (1930), 2. रश्मि (1932), 3. नीरजा (1934), 4. सांध्यगीत (1936), 5. दीपशिखा (1942),
6. सप्तपर्णा (अनूदित 1959), 7. प्रथम आयाम (1974) और 8. अग्निरखा (1990)
कहानी संग्रह
गिल्लू , नीलकंठ और अन्य कहानियां चंडीगर
मैं नीर भरी
मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा; क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
महादेवी वर्मा इन पुरस्कारों से की गई हैं सम्मानित
महादेवी वर्मा के उनके हिन्दी साहित्य में योगदान के लिए कई बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें भारत सरकार के द्वारा भारत के सबसे बड़े पुरस्कारों पद्म भूषण, ज्ञानपीठ और पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है
महादेवी वर्मा को 27 अप्रैल, 1982 में काव्य संकलन “यामा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप, 1988 में पद्म विभूषण और 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
महादेवी वर्मा की जयंती पर शिक्षिका और उत्तराखंड में साहित्य के क्षेत्र में उभरती कवयित्री साहित्यकार कथाकार और अनेकों पुरस्कार प्राप्त शशि जोशी ने एक कविता के माध्यम से महादेवी वर्मा को कुछ इस तरह याद किया है
महादेवी वर्मा जी की जयंती पर… 🙏
दुखों ने तपाया..
ठोका,बजाया..
बाधाओं ने राह रोकी..
समाज ने की तमाम टोका – टोकी..
लेकिन..!
कब रुका नदी सा प्रवाह छलाछल..
कर गया सिंचित साहित्य धरा को ..!
बना गया हरा – भरा..
आज भी..लहलहा रही है ..
हिंदी की निर्मल थाती..
ऐ महादेवी..! तुम्हारे ललित भावों से..
चमक रहा है मां भारती का ललाट..
तुम्हारे गद्य – पद्य के अक्षत – चंदन से..!
जब तक है इस धरा पर साहित्य..
तब तक..
तुम्हारी कीर्ति भी है अक्षुण्ण ..!
ओ महादेवी! शत – शत नमन।
©® डॉ शशि जोशी “शशी”
एल. टी हिंदी एवम् प्रभारी प्रधानाध्यापिका
राजकीय कन्या हाई स्कूल, बाँगीधार , सल्ट (अल्मोडा)
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