दी टॉप टेन न्यूज़ देहरादून
नैनीताल-आज नैनीताल हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में उत्तराखंड में राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त करने की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
इस मामले में अब अगली सुनवाई 17 अगस्त को होनी है। इस दौरान राज्य सरकार की तरफ से प्रगति रिपोर्ट पेश कर कहा कि सरकार ने कई क्षेत्रों में रेगुलर पुलिस की व्यवस्था कर दी है। अन्य क्षेत्रों में इस व्यवस्था को लागू करने के लिए सरकार प्रयास कर रही है।
2004 में सुप्रीम कोर्ट ने भी नवीन चन्द्र बनाम राज्य सरकार केस में इस व्यवस्था को समाप्त करने की आवश्यकता समझी थी। जिसमें कहा गया कि राजस्व पुलिस को सिविल पुलिस की भांति ट्रेनिंग नहीं दी जाती। यही नहीं राजस्व पुलिस के पास आधुनिक साधन, कम्प्यूटर,डीएनए और रक्त परीक्षण, फोरेंसिक जांच ,फिंगर प्रिंट जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नही होती है। इन सुविधाओं के अभाव में अपराध की समीक्षा करने में परेशानियां होती है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्य में एक समान कानून व्यवस्था हो, जो नागरिकों को मिलना चाहिए।
उत्तराखंड में सितंबर 2022 में अंकिता हत्याकांड के जांच के समय राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त करने के लिए जनता की मांग ने जबर्दस्त जोर पकड़ा था।
उत्तराखंड प्रदेश में राजस्व पुलिस की व्यवस्था की शुरूआत साल 1861 में हुई थी। जिसके तहत पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार से लेकर जिलाधिकारी और मंडलायुक्त तक को राजस्व कार्यों के साथ ही पुलिस के कार्यों की जिम्मेदारी निभानी होती थी। इस व्यवस्था में एक बड़ा रोल पटवारी का रहता है। जिसके पास अपराधियों से टक्कर लेने के लिए आधुनिक हथियार नहीं, महज एक डंडा रहता है। भारतीय कानून के अनुसार अस्त्र-शस्त्र केवल रेगुलर पुलिस को धारण करने का अधिकार है। राजस्व पुलिस को यह सुविधा नहीं मिलती। जिस कारण इस पुलिस को उत्तराखंड में गांधी पुलिस के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
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