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गोपाल सिंह बिष्ट
रानीखेत -उत्तराखण्ड के कुमाऊं में मनाया जाने वाला लोक पर्व खतडुवा बीते रोज पूरे कुमाऊं क्षेत्र में धूमधाम से मनाया गया तो वहीं रानीखेत के चौबटिया और द्वाराहाट क्षेत्र में भी खतडुवा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। दरअसल खतडुवा शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक और पशुपालकों के लिए विशेष महत्व रखता है। उत्तराखण्ड की संस्कृति और परंपराएं अनमोल हैं। यहां पर प्रमुख देवी देवताओं के अलावा स्थान देवता, वन देवता, तथा पशु देवता को भी पूजने का प्रावधान है। वैसे तो यहां कई प्रकार के लोक पर्व मनाए जाते हैं लेकिन पशुधन को समर्पित पर्व ” *खतडुआ* ” कुमाऊं क्षेत्र में खासा महत्व रखता है। वर्षा ऋतु के समाप्त होने तथा शरद ऋतु के आगमन पर यह लोक पर्व मनाया जाता है। इस दिन युवा बच्चे और परिवारजन शाम के जब अंधेरा शुरू होने लगता है उस समय सुखी घास का एक ढेर बनाते है। भांग की लकड़ी में कपड़ा बांध कर उसमें आग लगाते हैं और गौशाला के अंदर घुमाते हैं जिससे वहां के कीट – कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और उसके बाद खतडुवा को आग लगाते हैं। और सभी लोग एक दूसरे को प्रसाद स्वरूप ककड़ी (खीरा)बांटते हैं।
उत्तराखण्ड में कृषि और पशुपालन आजीविका के मुख्य आधार हैं, यहां आज भी कृषि और पशुपालन से संबंधित कई लोक पर्व मनाए जाते हैं। ऐसा ही एक लोक पर्व है *”खतडुवा”* इस शब्द की उत्पत्ति *”खातड़”* अर्थात रजाई या गर्म कपड़ों से हुई है। माना जाता है कि इसके बाद पहाड़ी क्षेत्रों में ठंड शुरू हो जाती है।